” गोचर “

” गोचर की भूमिका “
ज्योतिष की किसी भी विधा में गोचर के समर्थन के बिना कोई घटना घटित नही हो सकती ।
गोचर अर्थात आकाश में ग्रहों का विभिन्न राशि / नक्षत्रों में विचरण ।
जब हम किसी घटना के बारे में विचार करते हुए दशा , भुक्ति , अन्तरास्वामी की सहमति लेते है तो अब घटना घटित होने के समय को देखने के लिये गोचर की अनुमति आवश्यक है ।
घटना के समय घटना को सूचित करने वाले ग्रहो का सम्बन्ध उन्ही संगत भावों से होगा जो घटना विशेष के लिये जिम्मेदार है जैसे आयु के सन्दर्भ में शनि के गोचर को 6 / 8 / 12 , मारक व बाधक भावों में देखना उचित होगा ।
मृत्यु के मामले में शनि की विशेष भूमिका होती है मृत्यु के समय शनि की उपस्थिति मारक या बाधक भाव मे या इन भावों पर दृष्टि होगी ।
ग्रह , नक्षत्र उनके उपस्वामी घटना के लिए अनुकूल परिस्थितियों को जन्म देते है फिर दशा , भुक्ति , अन्तर मार्ग प्रशस्त करते है गोचर इनके लिए नाके पर ग्रीन सिग्नल बताते है ।
बिना ग्रीन सिग्नल के घटना की गाड़ी मंजिल पर नही पहुंच सकती ।

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